मेरी मौत ऐ साक़ी इर्तिक़ा है हस्ती का
इक 'सलाम' जाता है एक आने वाला है
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मेरी फ़िक्र की ख़ुशबू क़ैद हो नहीं सकती
आज फिर ये कह रहा हूँ
कभी कभी अर्ज़-ए-ग़म की ख़ातिर हम इक बहाना भी चाहते हैं
शुक्रिया ऐ गर्दिश-ए-जाम-ए-शराब
हवा ज़माने की साक़ी बदल तो सकती है
न मौज-ए-बादा न ज़ुल्फ़ों न इन घटाओं ने
रद्द-ए-अमल
अंदेशा
ड्राइंग-रूम
धरती अमर है
पीतल का साँप
हम ऐसे लोग जल्द असीर-ए-ख़िज़ाँ हुए