हाल-ए-दिल कौन सुनाए उसे फ़ुर्सत किस को
सब को इस आँख ने बातों में लगा रक्खा है
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हाल मत पूछ मोहब्बत का हवा है कुछ और
सोच में गुम बे-कराँ पहनाइयाँ
न पूछो अक़्ल की चर्बी चढ़ी है उस की बोटी पर
इश्क़ में जिस के ये अहवाल बना रक्खा है
इक पतिंगे ने ये अपने रक़्स-ए-आख़िर में कहा
जाने किसी ने क्या कहा तेज़ हवा के शोर में
जो बात दिल में थी वो कब ज़बान पर आई
मेरा चेहरा
तिरे साँचे में ढलता जा रहा हूँ
समाअतों को अमीन-ए-नवा-ए-राज़ किया
दर-ब-दर ठोकरें खाईं तो ये मालूम हुआ
मैं सर छुपाऊँ कहाँ साया-ए-नज़र के बग़ैर