निकले थे दोनों भेस बदल के तो क्या अजब
मैं ढूँडता ख़ुदा को फिरा और ख़ुदा मुझे
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Gulzar
Anwar Masood
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(675) Peoples Rate This
दोस्ती कुछ नहीं उल्फ़त का सिला कुछ भी नहीं
ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत न हो मगर
कैसे हो क्या है हाल मत पूछो
वो पास रह के भी मुझ में समा नहीं सकता
वो एक ख़्वाब जो फिर लौट कर नहीं आया
बुत समझते थे जिस को सारे लोग
ख़्वाबों के आसरे पे बहुत दिन जिए हो तुम
बे-वज्ह ज़ुल्म सहने की आदत नहीं रही
मैं तुझ से लाख बिछड़ कर यहाँ वहाँ जाता
झूटी उम्मीद की उँगली को पकड़ना छोड़ो
तेग़ खींचे हुए खड़ा क्या है