ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत न हो मगर
पहले सा जोश पहले सी शिद्दत नहीं रही
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ख़्वाबों के आसरे पे बहुत दिन जिए हो तुम
ये अलग बात कि वो मुझ से ख़फ़ा रहता है
मुझे ख़बर न थी इस घर में कितने कमरे हैं
मैं तुझ से लाख बिछड़ कर यहाँ वहाँ जाता
हज़ार चाहें मगर छूट ही नहीं सकती
हम जो पहले कहीं मिले होते
निकले थे दोनों भेस बदल के तो क्या अजब
झूटी उम्मीद की उँगली को पकड़ना छोड़ो
जागते में भी ख़्वाब देखे हैं
चाँद सूरज की तरह तुम भी हो क़ुदरत का खेल
कहो तो आज बता दें तुम्हें हक़ीक़त भी