झूटी उम्मीद की उँगली को पकड़ना छोड़ो
दर्द से बात करो दर्द से लड़ना छोड़ो
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चाँद सूरज की तरह तुम भी हो क़ुदरत का खेल
रह गया कम ही गो सफ़र बाक़ी
हज़ार चाहें मगर छूट ही नहीं सकती
किसी क़िस्मत में एक घर निकला
बुत समझते थे जिस को सारे लोग
वो भी हमारे नाम से बेगाने हो गए
ख़ाली बरामदों ने मुझे देख कर कहा
बे-वज्ह ज़ुल्म सहने की आदत नहीं रही
कुछ तो मैं भी डरा डरा सा था
जागते में भी ख़्वाब देखे हैं
कभी ख़्वाबों में मिला वो तो ख़यालों में कभी