वो भी हमारे नाम से बेगाने हो गए
हम को भी सच है उन से मोहब्बत नहीं रही
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झाँकते रात के गरेबाँ से
झूटी उम्मीद की उँगली को पकड़ना छोड़ो
क्या नहीं जानता मुझे कोई
आए हैं घर मिरा सजाने दर्द
बुत समझते थे जिस को सारे लोग
तेग़ खींचे हुए खड़ा क्या है
ये तमन्ना है कि अब और तमन्ना न करें
ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत न हो मगर
हम जो पहले कहीं मिले होते
ज़िंदगी इस क़दर कठिन क्यूँ है
कुछ तो अपने लिए भी रखना है
मैं तुझ से लाख बिछड़ कर यहाँ वहाँ जाता