ये अलग बात कि वो मुझ से ख़फ़ा रहता है
मैं इक इंसान हूँ और मुझ में ख़ुदा रहता है
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गुफ़्तुगू तीर सी लगी दिल में
निकले थे दोनों भेस बदल के तो क्या अजब
देखे जो मेरी नेकी को शक की निगाह से
ख़ाली बरामदों ने मुझे देख कर कहा
मैं तुझ से लाख बिछड़ कर यहाँ वहाँ जाता
कभी ख़्वाबों में मिला वो तो ख़यालों में कभी
बे-वज्ह ज़ुल्म सहने की आदत नहीं रही
जागते में भी ख़्वाब देखे हैं
आए हैं घर मिरा सजाने दर्द
कुछ तो अपने लिए भी रखना है
कहो तो आज बता दें तुम्हें हक़ीक़त भी