मैं उस की पुजारन वो पुजारी मेरा
मैं इस की भिकारन वो भिकारी मेरा
इक पाँव पे कह दूँ तो खड़ा हो जाए
मुरली की तरह कृष्ण मुरारी मेरा
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जब शाम ढली सिंगार कर के रोई
दो दो मिरे मेहमान चले आते हैं
हर शाम हुई सिंगार करना भी है
पूछूँगी कोई बात न मुँह खोलूँगी
आता है जो मुँह में मुझे कह देती हो
आँखों में हया उस के जब आई शब-ए-वस्ल
बाबुल के घर से जब आई उठ कर डोली