ये बात सच है कि वो ज़िंदगी नहीं मेरी
मगर वो मेरे लिए ज़िंदगी से कम भी नहीं
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ये झूट है कि बिछड़ने का उस को ग़म भी नहीं
लाख समझाया मगर ज़िद पे अड़ी है अब भी
हो लेने दो बारिश हम भी रो लेंगे
मैं ख़ुद को देखूँ अगर दूसरे की आँखों से
ये ख़ल्क़ सारी हवा मेरे नाम कर देगी
मैं तुझ से झुक के मिला हूँ मगर ये ध्यान रहे
आता रहा हूँ याद मैं उस को तमाम उम्र
ख़त हो कोई किताब हो या दिल का ज़ख़्म हो
ख़ता उस की मुआफ़ी से बड़ी है
न जाने कैसी आँधी चल रही है
ग़ज़ल कहने में यूँ तो कोई दुश्वारी नहीं होती