जो मुँह से कहते हैं कुछ और करते हैं कुछ और
वही ज़माना में कुछ इख़्तियार रखते हैं
Parveen Shakir
Wasi Shah
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Rahat Indori
Anwar Masood
Gulzar
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(438) Peoples Rate This
भूल कर ले गया सू-ए-मंज़िल
शैख़ चल तू शराब-ख़ाने में
आशिक़-मिज़ाज रहते हैं हर वक़्त ताक में
वुसअ'त-ए-बहर-ए-इश्क़ क्या कहिए
ख़याल-ए-नाफ़ में ज़ुल्फ़ों ने मुश्कीं बाँध दीं मेरी
तेरी महफ़िल में जितने ऐ सितम-गर जाने वाले हैं
की मय से हज़ार बार तौबा
धर के हाथ अपना जिगर पर मैं वहीं बैठ गया
गो हम शराब पीते हमेशा हैं दे के नक़्द
तुम्हें शब-ए-व'अदा दर्द-ए-सर था ये सब हैं बे-ए'तिबार बातें
बोसा देते हो अगर तुम मुझ को दो दो सब के दो
जिस का राहिब शैख़ हो बुत-ख़ाना ऐसा चाहिए