उस के मिलने पे भी महसूस हुआ है 'सरमद'
उस ने देखा ही न हो मैं ने बुलाया ही न हो
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सब की अपनी मंज़िलें थीं सब के अपने रास्ते
बे-दिली में भी दिल बड़ा रखना
महबूबा के लिए आख़िरी नज़्म
नज़्म
मरने का पता दे मिरे जीने का पता दे
मेरी तारीख़ का लुंडा बाज़ार
पल भर का बहिश्त
कौन है किस ने पुकारा है सदा कैसे हुई
रौशनी रंगों में सिमटा हुआ धोका ही न हो
हाँ मेरी महबूबा
उस के जाने का यक़ीं तो है मगर उलझन में हूँ