बस एक बार याद ने तुम्हारा साथ छू लिया
फिर इस के बाद तो कई जमाल जागते रहे
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आगही का जाल
अब तो सँवारने के लिए हिज्र भी नहीं
निगाह-ए-ख़ाक! ज़रा पैराहन बदलना तो
आमरियत का क़सीदा
ख़ाली ख़ाली रस्तों पे बे-कराँ उदासी है
अजाइब-ख़ाना
सवाब की दुआओं ने गुनाह कर दिया मुझे
बे-परों की तितली
अरीज़े की डाली
बिस्तर और बावर्ची
कोई जवाज़ ढूँडते ख़याल ही नहीं रहा