अब मुझ को रुख़्सत होना है अब मेरा हार-सिंघार करो
क्यूँ देर लगाती हो सखियो जल्दी से मुझे तय्यार करो
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हम तो गवाह हैं कि ग़लत था लिखा गया
न पूछ देख के कितना मलाल होता है
मौसम के पास कोई ख़बर मो'तबर भी हो
हर रोज़ राह तकती हैं मेरे सिंघार की
दूर हुआ इबहाम कहानी ख़त्म हुई
सब तोड़ के बंधन दुनिया के मैं प्यार की जोत जगाऊँगी
सिमट न पाए कि हर-सू बिखर गए थे हम
अब मुझ को क्या ख़बर वो यहाँ है भी या नहीं
कितने अंजान जज़ीरों में मुझे ले के चला
क़फ़स को ले के उड़ना पड़ रहा है
गए बरस की यही बात यादगार रही
मंज़र से कभी दिल के वो हटता ही नहीं है