क़दम उठे हैं तो धूल आसमान तक जाए
तवील हिज्र है इक मुख़्तसर विसाल के बा'द
झूटी मोहब्बत
हादसे शहर का दस्तूर बने जाते हैं
राज़ में रख तिरी रुस्वाई का क़िस्सा मैं हूँ
मुझ को बिखराया गया और समेटा भी गया
शाइ'री रूह में तहलील नहीं हो पाती
मेरे होंटों पे ख़ामुशी है बहुत
घर के दीवार-ओ-दर पे शाम ही से
हर घड़ी चश्म-ए-ख़रीदार में रहने के लिए
ख़ुद को इतना भी न बचाया कर
चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए