Ghazals of Shakeel Badayuni (page 2)

Ghazals of Shakeel Badayuni (page 2)
नामशकील बदायुनी
अंग्रेज़ी नामShakeel Badayuni
जन्म की तारीख1916
मौत की तिथि1970
जन्म स्थानMumbai

शिकवा-ए-इज़्तिराब कौन करे

शायद आग़ाज़ हुआ फिर किसी अफ़्साने का

शब की बहार सुब्ह की नुदरत न पूछिए

सर-निगूँ कर ही दिया शौक़-ए-जबीं-साई ने

सरगुज़िश्त-ए-दिल को रूदाद-ए-जहाँ समझा था मैं

सर भी है पा-ए-यार भी शौक़-ए-सिवा को क्या हुआ

रूह को तड़पा रही है उन की याद

रौशनी साया-ए-ज़ुल्मात से आगे न बढ़ी

रंग-ए-सनम-कदा जो ज़रा याद आ गया

राह-ए-ख़ुदा में आलम-ए-रिन्दाना मिल गया

रह वफ़ा में कोई साहिब-ए-जुनूँ न मिला

क़स्र वीरान हुआ जाता है

पैहम तलाश-ए-दोस्त मैं करता चला गया

पहलू में दर्द-ए-इश्क़ की दुनिया लिए हुए

नुमायाँ दोनों जानिब शान-ए-फ़ितरत होती जाती है

नियाज़-ओ-नाज़ की ये शान-ए-ज़ेबाई नहीं जाती

निगाह-ए-नाज़ का इक वार कर के छोड़ दिया

नज़र-नवाज़ नज़ारों में जी नहीं लगता

नज़र से क़ैद-ए-तअय्युन उठाई जाती है

नसीब दर पे तिरे आज़माने आया हूँ

नग़्मा-ए-इश्क़ सुनाता हूँ मैं इस शान के साथ

न सोचा था ये दिल लगाने से पहले

न पैमाने खनकते हैं न दौर-ए-जाम चलता है

मुझ को साक़ी ने जो रुख़्सत किया मय-ख़ाने से

मिरी ज़िंदगी पे न मुस्कुरा मुझे ज़िंदगी का अलम नहीं

मिरी ज़िंदगी है ज़ालिम तिरे ग़म से आश्कारा

मेरी दीवानगी नहीं जाती

मेरी बर्बादी को चश्म-ए-मो'तबर से देखिए

मेरे हम-नफ़स मेरे हम-नवा मुझे दोस्त बन के दग़ा न दे

मौसम-ए-गुल साथ ले कर बर्क़ ओ दाम आ ही गया

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