Ghazals of Shakeel Badayuni (page 3)
नाम | शकील बदायुनी |
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अंग्रेज़ी नाम | Shakeel Badayuni |
जन्म की तारीख | 1916 |
मौत की तिथि | 1970 |
जन्म स्थान | Mumbai |
लुत्फ़-ए-निगाह-ए-नाज़ की तोहमत उठाए कौन
लतीफ़ पर्दों से थे नुमायाँ मकीं के जल्वे मकाँ से पहले
लम्हा लम्हा बार है तेरे बग़ैर
ला रहा है मय कोई शीशे में भर के सामने
कोई आरज़ू नहीं है कोई मुद्दआ' नहीं है
किसी को जब निगाहों के मुक़ाबिल देख लेता हूँ
ख़ुश हूँ कि मिरा हुस्न-ए-तलब काम तो आया
ख़िरद को आज़माना चाहता हूँ
ख़ाना-ए-उम्मीद बे-नूर-ओ-ज़िया होने को है
करने दो अगर क़त्ताल-ए-जहाँ तलवार की बातें करते हैं
कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है
कहीं हुस्न का तक़ाज़ा कहीं वक़्त के इशारे
कब तक 'शकील' दिल को दुआ कीजिएगा आप
जुनूँ से गुज़रने को जी चाहता है
जो दिल पे गुज़रती है वो समझा नहीं सकते
जीने वाले क़ज़ा से डरते हैं
जज़्बात की रौ में बह गया हूँ
जाम गर्दिश में है दर-बंद हैं मय-ख़ानों के
जल्वा-ए-हुस्न-ए-करम का आसरा करता हूँ मैं
जादा-ए-इश्क़ में गिर गिर के सँभलते रहना
जब कभी हम तिरे कूचे से गुज़र जाते हैं
इश्क़ की चिंगारियों को फिर हवा देने लगे
इश्क़ का कोई ख़ैर-ख़्वाह तो है
इस दर्जा बद-गुमाँ हैं ख़ुलूस-ए-बशर से हम
इहानत-ए-दिल-ए-सब्र-आज़मा नहीं करते
हम उन की अंजुमन का समाँ बन के रह गए
हम हैं और उन की ख़ुशी है आज-कल
हुई हम से ये नादानी तिरी महफ़िल में आ बैठे
हज़ार क़ैद-ए-ख़िज़ाँ से छुट कर बहार का आसरा करेंगे
हज़ार क़ैद-ए-जवाँ से छुट कर बहार का आसरा करेंगे