Ghazals of Shakeel Badayuni (page 4)

Ghazals of Shakeel Badayuni (page 4)
नामशकील बदायुनी
अंग्रेज़ी नामShakeel Badayuni
जन्म की तारीख1916
मौत की तिथि1970
जन्म स्थानMumbai

हर गोशा-ए-नज़र में समाए हुए हो तुम

हक़ीक़त-ए-ग़म-ए-उल्फ़त छुपा रहा हूँ मैं

हंगामा-ए-ग़म से तंग आ कर इज़हार-ए-मसर्रत कर बैठे

हाए इस मजबूरी-ए-ज़ौक़-ए-नज़र को क्या करूँ

गुलशन हो निगाहों में तो जन्नत न समझना

ग़म-ए-जहाँ के फ़साने तलाश करते हैं

ग़म-ए-इश्क़ रह गया है ग़म-ए-जुस्तुजू में ढल कर

ग़म-ए-हयात भी आग़ोश-ए-हुस्न-ए-यार में है

ग़म-ए-आशिक़ी से कह दो रह-ए-आम तक न पहुँचे

ग़म से कहाँ ऐ इश्क़ मफ़र है

फ़रेब-ए-मोहब्बत से ग़ाफ़िल नहीं हूँ

इक इक क़दम फ़रेब-ए-तमन्ना से बच के चल

दूर हैं वो और कितनी दूर

दुनिया की रिवायात से बेगाना नहीं हूँ

दिल वही दिल जिसे नाशाद किए जाता हूँ

दिल में किसी ख़लिश का गुज़र चाहता हूँ मैं

दिल मरकज़-ए-हिजाब बनाया न जाएगा

दिल लज़्ज़त-ए-निगाह करम पा के रह गया

दिल के बहलाने की तदबीर तो है

चाँदनी में रुख़-ए-ज़ेबा नहीं देखा जाता

बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी है

बे-ख़ुदी है न होशियारी है

बे-कसी से मरने मरने का भरम रह जाएगा

बेकार गई आड़ तिरे पर्दा-ए-दर की

बेगाना हो के बज़्म-ए-जहाँ देखता हूँ मैं

बस इक निगाह-ए-करम है काफ़ी अगर उन्हें पेश-ओ-पस नहीं है

बहार आई किसी का सामना करने का वक़्त आया

बदले बदले मिरे ग़म-ख़्वार नज़र आते हैं

ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया

ऐ इश्क़ ये सब दुनिया वाले बे-कार की बातें करते हैं

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