टटोलो परख लो चलो आज़मा लो
ख़ुदा की क़सम बा-ख़ुदा आदमी हूँ
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याद आती है अच्छी सी कोई बात सर-ए-शाम
कभी भँवर थी जो इक याद अब सुनामी है
ज़मीं चिल्लाई चीख़ी बिलबिला के
ज़ियाँ गर कुछ हुआ तो उतना जितना सूद होता है
अहम आँखें हैं या मंज़र खुले तो
साल, पर साल, और फिर इस साल
निराला अजब नक-चढ़ा आदमी हूँ
उम्र गुज़र जाती है क़िस्से रह जाते हैं
बस एक बार फ़क़त एक बार कम से कम
शहर में आ ही गए हैं तो गुज़ारा कर लें
तुम में तो कुछ भी वाहियात नहीं
वो एक शख़्स मिरे पास जो रहा भी नहीं