याद आती है अच्छी सी कोई बात सर-ए-शाम
फिर सुब्ह तलक सोचते रहते हैं वो क्या थी
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कभी भँवर थी जो इक याद अब सुनामी है
इक्का दुक्का शाज़-ओ-नादिर बाक़ी हैं
तुम में तो कुछ भी वाहियात नहीं
शहर में आ ही गए हैं तो गुज़ारा कर लें
कोई ऐसे वक़्त में हम से बिछड़ा है
बड़ी सर्द रात थी कल मगर बड़ी आँच थी बड़ा ताव था
टटोलो परख लो चलो आज़मा लो
उसे न मिलने की सोचा है यूँ सज़ा देंगे
निराला अजब नक-चढ़ा आदमी हूँ
आ तिरे संग ज़रा पेंग बढ़ाई जाए
वो एक शख़्स मिरे पास जो रहा भी नहीं