हवा की राह-नुमाई पे शक नहीं रखते

हवा की राह-नुमाई पे शक नहीं रखते

हम अपने पाँव के नीचे सड़क नहीं रखते

हमारी आँखों में इक ऐसा ख़्वाब सिमटा है

पए सुरूर पलक पर पलक नहीं रखते

हवा दहाड़ के टकराए भी तो क्या हासिल

पहाड़ अपने बदन में लचक नहीं रखते

तुम उस को कुंद समझ कर न धोका खा जाना

हम अपनी तेग़-ए-अना पर चमक नहीं रखते

हमारी गलियों में ऐसे भी लोग आते हैं

ज़मीं पे पैर हैं रखते धमक नहीं रखते

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In Hindi By Famous Poet Shariq Adeel. is written by Shariq Adeel. Complete Poem in Hindi by Shariq Adeel. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.