हर मुल्क इस के आगे झुकता है एहतिरामन
हर मुल्क का है फ़ादर हिन्दोस्ताँ हमारा
Gulzar
Wasi Shah
Habib Jalib
Rahat Indori
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1339) Peoples Rate This
ज़ुल्फ़-ए-दराज़ से ये नुमायाँ है ग़ालिबन
किया जो ए'तिबार उन पर मरीज़-ए-शाम-ए-हिज्राँ ने
गिन के देता है बला-नोशों को पैमाना अभी
ईमान की लग़्ज़िश का इम्कान अरे तौबा
तर्क-ए-लज़्ज़ात पे माइल जो ब-ज़ाहिर है मिज़ाज
बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था
जो मस्त-ए-जाम-ए-बादा-ए-इरफ़ाँ न हो सका
गुर बुत-ए-कम-सिन दाम बिछाए
मह-जबीनों की मोहब्बत का नतीजा न मिला
मंज़िल है कठिन कम ज़ाद-ए-सफ़र मालूम नहीं क्या होना है
राज़ में रक्खेंगे हम तेरी क़सम ऐ नासेह
न दे साक़ी मुझे कुछ ग़म नहीं है