पत्तियाँ हो गईं हरी देखो
ख़ुद से बाहर भी तो कभी देखो
Ahmad Faraz
Gulzar
Wasi Shah
Habib Jalib
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(504) Peoples Rate This
ऊँची इमारतें तो बड़ी शानदार हैं
सुन लिया होगा हवाओं में बिखर जाता है
रीत पर जितने भी नविश्ते हैं
एक आसेब है हर इक घर में
निकले कभी न घर से मगर इस के बावजूद
दोस्ती इश्क़ और वफ़ादारी
वो गुनगुनाते रास्ते ख़्वाबों के क्या हुए
बीच का बढ़ता हुआ हर फ़ासला ले जाएगा
अक्स ने आईने का घर छोड़ा
ज़ुल्म तो बे-ज़बान है लेकिन
क्या ख़बर थी आतिशीं आब-ओ-हवा हो जाऊँगा