पर्दे में ख़मोशी के बुर्के में उदासी के
शायद कोई आ जाए दरवाज़ा खुला रखना
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आ दिल में तुझे कहीं छुपा लूँ
ये किस अज़ाब में छोड़ा है तू ने इस दिल को
हर-चंद सहारा है तिरे प्यार का दिल को
मैं ने ही न कुछ खोया जो पाया न किसी को
जाने क्या बात है मानूस बहुत लगता है
ऐश-ए-दुनिया का जब शुमार न था
इक ज़माने से फ़लक ठहरा हुआ लगता है
ज़िंदगी तुझ पे गिराँ है तू मरेगा कैसे
जब मंज़िलों वहम था न शब का
हासिल-ए-इंतिज़ार कुछ भी नहीं
हम पी गए सब हिले न लब तक
हर सम्त फ़लक-बोस पहाड़ों की क़तारें