Ghazals of Siya Sachdev

Ghazals of Siya Sachdev
नामसिया सचदेव
अंग्रेज़ी नामSiya Sachdev

ज़िंदगी तुझ को कहीं पर तो ठहरना होगा

तुम ने महसूस कहाँ मेरी ज़रूरत की है

तेरा ही ज़िक्र हरसू तिरा ही बयाँ मिले

तसव्वुरात में दिल की उड़ान देख ज़रा

सुलगते दश्त का मंज़र हुई हैं

रिश्तों की काएनात में सिमटी हुई हूँ मैं

रंज इतने मिले ज़माने से

रह कर भी तुझ से दूर तिरे आस-पास हूँ

निगाह मुझ से मिलाने की उन में ताब नहीं

मेरी रुस्वाई का यूँ जश्न मनाया तुम ने

मैं जिस दिन से अकेली हो गई हूँ

लिखा जो अश्क से तहरीर में नहीं आया

कुछ इस तरह से है मेरे असर में तन्हाई

जिस दिन से मिरी तुम से शनासाई हुई है

है जो दीवार पर घड़ी तन्हा

है धूप तेज़ कोई साएबान कैसे हो

फ़सील-ए-दर्द को मैं मिस्मार करने वाली हूँ

दर-हक़ीक़त रोज़-ओ-शब की तल्ख़ियाँ जाती रहीं

अब तिरे शहर से चुप-चाप गुज़रना होगा

अब कोई सिलसिला नहीं बाक़ी

आरज़ूओं को अना-गीर नहीं कर सकते

आप की बस ये निशानी रह गई

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