एक हम्माम में तब्दील हुई है दुनिया
सब ही नंगे हैं किसे देख के शरमाऊँ मैं
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ला-यानियत
नाज़-पर्वर्दा-ए-जहाँ तुम हो
तुम्हारी क़ैद-ए-वफ़ा से जो छूट जाऊँगा
कोई दुश्मन कोई हमदम भी नहीं साथ अपने
भेस क्या क्या न ज़माने में बनाए हम ने
हर बात तिरी जान-ए-जहाँ मान रहा हूँ
डीप-फ़्रीज़
हिसाब-ए-उम्र करो या हिसाब-ए-जाम करो
तिरा दिल तो नहीं दिल की लगी हूँ
क़ातिल-ए-बे-चेहरा
'अरीब' देखो न इतराओ चंद शेरों पर
मैं ख़ुद से मायूस नहीं हूँ