मैं पर-शिकस्ता न था बादलों के बीच मगर
मिरी उड़ान का ज़ंजीर से लिपट जाना
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ख़याल है कि हक़ीक़त है या फ़साना है
तसलसुल पाएमाली का मिलेगा
सुख़न की शब लहू होती रहेगी
हल्क़ा-ए-शाम-ओ-सहर से नहीं जाने वाला
मैं देखता हूँ फ़राज़-ए-जुनूँ से दुनिया को
है किस के लिए लुत्फ़ ग़ज़ब किस के लिए है
कहीं पे दस्त-ए-निगारीं कहीं लब-ए-ल'अलीं
जाने किस मोड़ पे दे हिज्र की सौग़ात मुझे
कहीं शो'ला कहीं शबनम, कहीं ख़ुशबू दिल पर
इक ख़ला है जो पुर नहीं होता
वजूद को जिगर-ए-मो'तबर बनाते हैं
दिल शहर-ए-तहय्युर है कि वो मम्लिकत-आरा