बक रहा हूँ आज कल हिज़यान बाक़ी ख़ैर है

बक रहा हूँ आज कल हिज़यान बाक़ी ख़ैर है

और लाहक़ है ज़रा निस्यान बाक़ी ख़ैर है

कार मेरे यार की थी और फिर चोरी की थी

हो गया है चूक में चालान बाक़ी ख़ैर है

घास भी उगती नहीं है बाल भी उगते नहीं

बन गया है सर मिरा मैदान बाक़ी ख़ैर है

फ़िक्र की तो बात कोई भी नहीं है जान-ए-जाँ

घर में हैं बस दर्जनों मेहमान बाक़ी ख़ैर है

एक अर्सा हो गया है रात दिन थाने में हूँ

और छुटने का नहीं इम्कान बाक़ी ख़ैर है

जिस का बंगला देख कर घर-बार को छोड़ा गया

वो तो यकसर हो गई अंजान बाक़ी ख़ैर है

बह रही है रात-भर से नाक सर में दर्द है

और कुछ सुनते नहीं हैं कान बाक़ी ख़ैर है

साल से है सास मेरी डाकुओं की क़ैद में

माँगते हैं वो बड़ा तावान बाक़ी ख़ैर है

है ज़रा ख़ारिश सी दादा-जान को लक़वा भी है

और हैं बीमार दादी-जान बाक़ी ख़ैर है

कल से है बच्ची को हैज़ा और बच्चे को बुख़ार

सब से छोटे को हुआ यरक़ान बाक़ी ख़ैर है

बात अब तशवीश की कोई नहीं ऐसी 'फ़हीम'

दूर तक मिलता नहीं इंसान बाक़ी ख़ैर है

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In Hindi By Famous Poet Syed Fahimuddin. is written by Syed Fahimuddin. Complete Poem in Hindi by Syed Fahimuddin. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.