इतनी न कीजे जाने की जल्दी शब-ए-विसाल
देखे हैं मैं ने काम बिगड़ते शिताब में
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करता हूँ तेरी ज़ुल्फ़ से दिल का मुबादला
रहने वालों को तिरे कूचे के ये क्या हो गया
तू क्यूँ पास से उठ चला बैठे बैठे
दिल किस की तेग़-ए-नाज़ से लज़्ज़त-चशीदा है
अभी इस राह से कोई गया है
फ़र्क़ कुछ तो चाहिए अग़्यार से
ख़ूब-सूरत न हो कोई तो न हो बदनामी
'तस्कीन' करूँ क्या दिल-ए-मुज़्तर का इलाज अब
'तस्कीं' ने नाम ले के तिरा वक़्त-ए-मर्ग आह
गर मेरे बैठने से वो आज़ार खींचते
उस कू मैं हुए हम वो लब-ए-बाम न आया
तुम ग़ैर से मिलो न मिलो मैं तो छोड़ दूँ