यूँ अचानक न ज़ुल्फ़ें बिखेरा करो
दिल तो नादान है बहक भी सकता है
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ज़बाँ ख़ामोश मगर नज़रों में उजाला देखा
ज़रा सँभलूँ भी तो वो आँखों से पिला देता है
कर के सारी हदों को पार चला
रहूँ इस में हर दम न हो आना जाना
मज़ा तो इश्क़ का तब है कि एक पल को सही
अपने घर पर बुला लिया उस ने
रुख़ से नक़ाब उन के जो हटती चली गई
आज की रात मुझे होश में रहने दो अभी
पलकों को तेरी शर्म से झुकता हुआ मैं देखूँ
नादान मेरा दिल बहक जाए न कहीं
एक ख़्वाब