ज़बाँ ख़ामोश मगर नज़रों में उजाला देखा
उस का इज़हार-ए-मोहब्बत भी निराला देखा
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कर के सारी हदों को पार चला
इस क़दर टूट कर मेरी नज़रों में न देखो वर्ना
यूँ अचानक न ज़ुल्फ़ें बिखेरा करो
नादान मेरा दिल बहक जाए न कहीं
एक ख़्वाब
ज़रा सँभलूँ भी तो वो आँखों से पिला देता है
रुख़ से नक़ाब उन के जो हटती चली गई
अपने घर पर बुला लिया उस ने
पलकों को तेरी शर्म से झुकता हुआ मैं देखूँ
मज़ा तो इश्क़ का तब है कि एक पल को सही
आज की रात मुझे होश में रहने दो अभी