Ghazals of Tilok Chand Mahroom

Ghazals of Tilok Chand Mahroom
नामतिलोकचंद महरूम
अंग्रेज़ी नामTilok Chand Mahroom
जन्म की तारीख1887
मौत की तिथि1966

ज़हे क़िस्मत अगर तुम को हमारा दिल पसंद आया

ये किस से आज बरहम हो गई है

वो दिल कहाँ है अहल-ए-नज़र दिल कहें जिसे

वो आई शाम-ए-ग़म वक़्फ़-ए-बला होने का वक़्त आया

वही अरमान जैसे जी जो मुश्किल से निकलते हैं

ताइर-ए-दिल के लिए ज़ुल्फ़ का जाल अच्छा है

सितम कोई नया ईजाद करना

शहर से एक तरफ़ दूर बहुत

नज़र उठा दिल-ए-नादाँ ये जुस्तुजू क्या है

क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना

किसी की याद को हम ज़ीस्त का हासिल समझते हैं

ख़ुदा से वक़्त-ए-दुआ हम सवाल कर बैठे

ख़िज़ाँ से पेशतर सारा चमन बर्बाद होता है

काविशों से अमाँ मिले न मिले

कम न थी सहरा से कुछ भी ख़ाना-वीरानी मिरी

इस का गिला नहीं कि दुआ बे-असर गई

होते हैं ख़ुश किसी की सितम-रानियों से हम

हिज्राँ की शब जो दर्द के मारे उदास हैं

हमारे वास्ते है एक जीना और मर जाना

हैरत-ज़दा मैं उन के मुक़ाबिल में रह गया

ग़लत की हिज्र में हासिल मुझे क़रार नहीं

फ़ित्ना-आरा शोरिश-ए-उम्मीद है मेरे लिए

दस्त-ए-ख़िरद से पर्दा-कुशाई न हो सकी

बाइस-ए-इम्बिसात हो आमद-ए-नौ-बहार क्या

बदनाम हूँ पर आशिक़-ए-बदनाम तुम्हारा

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