हम उस की ज़ुल्फ़ की ज़ंजीर में हुए हैं असीर
सजन के सर की बला आ पड़ी हमारे गले
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है उस की ज़ुल्फ़ से नित पंजा-ए-अदू गुस्ताख़
हँसूँ जूँ गुल तिरे ज़ख़्मों से उल्फ़त इस को कहते हैं
तीरा-बख़्तों को करे है नाला-ए-ग़मगीं ख़राब
जब से दिलबर ने आँख फेरा है
मौसम-ए-गुल में हैं दीवानों के बाज़ार कई
जूँ गुल अज़-बस-कि जुनूँ है मिरा सामान के सात
बाद-ए-बहार में सब आतिश जुनून की है
अबस तोड़ा मिरा दिल नाज़ सिखलाने के काम आता
मैं वो मजनूँ हूँ कि आबाद न उजड़ा समझूँ
तिरी ज़ुल्फ़ की शब का बेदार मैं हूँ
यार उठ गए दुनिया से अग़्यार की बारी है
दर्द जूँ शम्अ' मिले है शब-ए-हिज्राँ मुझ को