बाद-ए-बहार में सब आतिश जुनून की है
हर साल आवती है गर्मी में फ़स्ल-ए-होली
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Gulzar
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(541) Peoples Rate This
तुझ से बोसा मैं न माँगा कभू डरते डरते
ख़ुदा शाहिद बुतो दो-जग से ये सौदा है निर्वाला
सख़्त पिस्ताँ तिरे चुभे दिल में
मैं सहरा जा के क़ब्र-ए-हज़रत-ए-मजनूँ को देखा था
नयन में ख़ूँ भर आया दिल में ख़ार-ए-ग़म छुपा शायद
ऐ नासेह चश्म-ए-तर से मत कर आँसू पाक रहने दे
जिन दिनों हम उस शब-ए-हज़ के सियह-कारों में थे
ग़ुंचा-ए-दिल मिरा खा कर गुल-ए-ख़ंदाँ मेरा
तीरा-बख़्तों को करे है नाला-ए-ग़मगीं ख़राब
हुए हम जब से पैदा अपने दीवाने हुए होते
पीर हो शैख़ हुआ है देखो तिफ़्लों का मुरीद
जपे है विर्द सा तुझ से सनम के नाम को शैख़