हिन्दू ओ मुस्लिमीन हैं हिर्स-ओ-हवा-परसत
हो आश्ना-परस्त वही है ख़ुदा-परस्त
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गुल रहे नहिं नाम को सरकश हैं ख़ाराँ अल-अयाज़
कुछ ग़ौर का जौहर नहीं ख़ुद-फ़हमी में हैराँ हैं
अरे उल्टे ज़माने मुझ पे क्या सीधा सितम लाया
मैं सहरा जा के क़ब्र-ए-हज़रत-ए-मजनूँ को देखा था
सिया है ज़ख़्म-ए-बुलबुल गुल ने ख़ार और बोईगुलशन से
ग़नीमत बूझ लेवें मेरे दर्द-आलूद नालों को
इस ज़माने में बुज़ुर्गी सिफ़्लगी का नाम है
जा कर फ़ना के उस तरफ़ आसूदा मैं हुआ
कुफ़्र मोमिन है न करना दिलबराँ से इख़्तिलात
फ़स्ल-ए-गुल में नईं बघूले उठते वीरानों के बीच
नंग नहीं मुझ को तड़पने से सँभल जाने का
फिर आई फ़स्ल-ए-गुल ऐ यार देखिए क्या हो