जा कर फ़ना के उस तरफ़ आसूदा मैं हुआ
मैं आलम-ए-अदम में भी देखा मज़ा न था
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मैं वो मजनूँ हूँ कि आबाद न उजड़ा समझूँ
बंदे हैं तेरी छब के मह से जमाल वाले
बहार आधी गुज़र गई हाए हम क़ैदी हैं ज़िंदाँ के
कर रहे हैं मुझ से तुझ-बिन दीदा-ए-नमनाक जंग
बाद-ए-बहार में सब आतिश जुनून की है
जुनूँ-आवर शब-ए-महताब थी पी की तमन्ना में
गुल रहे नहिं नाम को सरकश हैं ख़ाराँ अल-अयाज़
कहा जो मैं ने गया ख़त से हाए तेरा हुस्न
तीरा-बख़्तों को करे है नाला-ए-ग़मगीं ख़राब
फिर आई फ़स्ल-ए-गुल ऐ यार देखिए क्या हो
ऐ यार मुझ अफ़सुर्दा-ए-हिज्राँ को पहुँच तू
जावे थी जासूसी-ए-मजनूँ को ता राहत न ले