आसमाँ इतनी बुलंदी पे जो इतराता है
भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है
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मैं जिन दिनों तिरे बारे में सोचता हूँ बहुत
बहुत से ख़्वाब देखोगे तो आँखें
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता
सभी रिश्ते गुलाबों की तरह ख़ुशबू नहीं देते
झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
तमाम उम्र बड़े सख़्त इम्तिहान में था
मिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारो
क्या बताऊँ कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैं ने किया
खुल के मिलने का सलीक़ा आप को आता नहीं
मैं अपने ख़्वाब से बिछड़ा नज़र नहीं आता
अक्सर इस तरह आस का दामन
वो पूछता था मिरी आँख भीगने का सबब