आज पी लेने दे जी लेने दे मुझ को साक़ी
कल मिरी रात ख़ुदा जाने कहाँ गुज़रेगी
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चराग़ घर का हो महफ़िल का हो कि मंदिर का
भरे मकाँ का भी अपना नशा है क्या जाने
अदना सा बासी
अपने हर हर लफ़्ज़ का ख़ुद आईना हो जाऊँगा
कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी
तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आते
मैं इस उमीद पे डूबा कि तू बचा लेगा
मैं बोलता गया हूँ वो सुनता रहा ख़ामोश
खुल के मिलने का सलीक़ा आप को आता नहीं
दूर से ही बस दरिया दरिया लगता है
वो ग़म अता किया दिल-ए-दीवाना जल गया
वो मेरे घर नहीं आता मैं उस के घर नहीं जाता