बुझा नहीं मिरे अंदर का आफ़्ताब अभी
जला के ख़ाक करेगा यही शरारा मुझे
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मौत के साथ हुई है मिरी शादी सो 'ज़फ़र'
जो बंदा-ए-ख़ुदा था ख़ुदा होने वाला है
तिरे आसमाँ की ज़मीं हो गया हूँ
ये साफ़ लगता है जैसी कि उस की आँखें थीं
तुम ही बतलाओ कि उस की क़द्र क्या होगी तुम्हें
कब वो ज़ाहिर होगा और हैरान कर देगा मुझे
कुछ उस ने सोचा तो था मगर काम कर दिया था
बात मुझ में भी कुछ इस तरह की होगी जो यहाँ
मेरे अंदर वो मेरे सिवा कौन था
मिरे निशान बहुत हैं जहाँ भी होता हूँ
आज कल उस की तरह हम भी हैं ख़ाली ख़ाली
रुख़-ए-ज़ेबा इधर नहीं करता