ज़िंदगी तू ने तो सच है कि वफ़ा हम से न की
हम मगर ख़ुद तुझे ठुकराएँ ज़रूरी तो नहीं
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मौत
तख़्ईल का दर खोले हुए शाम खड़ी है
तपिश से फिर नग़्मा-ए-जुनूँ की सुरूद-ओ-चंग-ओ-रबाब टूटे
दिन का कर्ब
बू-ए-गुल रक़्स में है बाद-ए-ख़िज़ाँ रक़्स में है
कहाँ तक काविश-ए-इसबात-ए-पैहम
ये ख़्वाबों के साए
वो हमें राह में मिल जाएँ ज़रूरी तो नहीं
कभी इश्क़ साज़-ए-हयात था कभी सोज़-ए-दिल ने जला दिया
हमीं से अंजुमन-ए-इश्क़ मो'तबर ठहरी
वो हर्फ़-ओ-सौत-ओ-सदा