और भी गहरी हो जाती है उस की सरगोशी
मुझ से किसी की आँखों की जब बातें करता है
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खुली थी आँख समुंदर की मौज-ए-ख़्वाब था वो
फिर एक नक़्श का नैरंग 'ज़ेब' बिखरेगा
वो मेरे सामने ख़ंजर-ब-कफ़ खड़ा था 'ज़ेब'
मैं लाख इसे ताज़ा रखूँ दिल के लहू से
बे-हिसी पर मिरी वो ख़ुश था कि पत्थर ही तो है
और गुलों का काम नहीं होता कोई
दिन तिरी याद में ढल जाता है आँसू की तरह
है सदफ़ गौहर से ख़ाली रौशनी क्यूँकर मिले
ज़ख़्म पुराने फूल सभी बासी हो जाएँगे
मरने का सुख जीने की आसानी दे
मेरा अदम वजूद भी क्या ज़र-निगार था
इक पीली चमकीली चिड़िया काली आँख नशीली सी