अजब अंदाज़ से ये घर गिरा है
मिरा मलबा मिरे ऊपर गिरा है
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Wasi Shah
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(3085) Peoples Rate This
मिलन की साअ'त को इस तरह से अमर किया है
तू मेरा है
आख़िर को रूह तोड़ ही देगी हिसार-ए-जिस्म
बाहर भी अब अंदर जैसा सन्नाटा है
तुम्हारे नाम के नीचे खिंची हुई है लकीर
ये और बात कि रंग-ए-बहार कम होगा
हज़ारों क़ुमक़ुमों से जगमगाता है ये घर लेकिन
अंदर की दुनिया से रब्त बढ़ाओ 'आनिस'
गहरी सोचें लम्बे दिन और छोटी रातें
हैरत से जो यूँ मेरी तरफ़ देख रहे हो
वो जो प्यासा लगता था सैलाब-ज़दा था