पाँव रुकते ही नहीं ज़ेहन ठहरता ही नहीं
कोई नश्शा है थकन का कि उतरता ही नहीं
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कुछ अपना पता दे कर हैरान बहुत रक्खा
उसे देख कर अपना महबूब प्यारा बहुत याद आया
किसी दश्त ओ दर से गुज़रना भी क्या
उतरे थे मैदान में सब कुछ ठीक करेंगे
फ़लक पर उड़ते जाते बादलों को देखता हूँ मैं
साए फैल गए खेतों पर कैसा मौसम होने लगा
कभी देखो तो मौजों का तड़पना कैसा लगता है
किसी का क़हर किसी की दुआ मिले तो सही
दिल में जो बात है बताते नहीं
एक मिश्अल थी बुझा दी उस ने