हमारे डूबने के बाद उभरेंगे नए तारे
जबीन-ए-दहर पर छटकेगी अफ़्शाँ हम नहीं होंगे
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ग़म के हाथों मिरे दिल पर जो समाँ गुज़रा है
हम-नफ़सो उजड़ गईं मेहर-ओ-वफ़ा की बस्तियाँ
हाल-ए-दिल सुन के वो आज़ुर्दा हैं शायद उन को
जो उन्हें वफ़ा की सूझी तो न ज़ीस्त ने वफ़ा की
तुझे कुछ इश्क़ ओ उल्फ़त के सिवा भी याद है ऐ दिल
अब नहीं जन्नत मशाम-ए-कूचा-ए-यार की शमीम
नई शमएँ जलाओ आशिक़ी की अंजुमन वालो
चराग़-ए-ज़िंदगी होगा फ़रोज़ाँ हम नहीं होंगे
वो है हैरत-फ़ज़ा-ए-चश्म-ए-मा'नी सब नज़ारों में
न मोहतसिब की न हूर-ओ-जिनाँ की बात करो
मिरे दिल में है कि पूछूँ कभी मुर्शिद-ए-मुग़ाँ से