शब पिए वो सराब निकला है
रात को आफ़्ताब निकला है
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सूफ़ी हूँ न वाइज़ हूँ नहीं हूँ मुल्ला
कुछ तुम्हें तर्स-ए-ख़ुदा भी है ख़ुदा की वास्ते
अगर बैठा ही नासेह मुँह को सी बैठ
नीम-चा जल्द म्याँ ही न मियाँ कीजिएगा
दिल तो हाज़िर है अगर कीजिए फिर नाज़ से रम्ज़
गर है दुनिया की तलब ज़ाहिद-ए-मक्कार से मिल
एहसान जो अजल से काम तेरा बिगड़े
ब-वक़्त-ए-बोसा-ए-लब काश ये दिल कामराँ होता
अँधेरी रात को मैं रोज़-ए-इश्क़ समझा था
न पाया गाह क़ाबू आह में ने हाथ जब डाला
तनख़्वाह एक बोसा है तिस पर ये हुज्जतें
गली से तिरी जो कि ऐ जान निकला