एहसान जो अजल से काम तेरा बिगड़े
इस वक़्त न हो दिल में जहाँ के झगड़े
यूँ तो कलिमा पढ़े तोता भी वले
टें टें करता है जब बिल्ली पकड़े
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नमाज़ अपनी अगरचे कभी क़ज़ा न हुई
मिरी बात-चीत उस से 'एहसाँ' कहाँ है
क्यूँ तू रोता है दिला आने दे रोज़-ए-वस्ल को
दिलबर ये वो है जिस ने दिल को दग़ा दिया है
एक बोसे से मुराद-ए-दिल-ए-नाशाद तो दो
महफ़िल इश्क़ में जो यार उठे और बैठे
दिल-रुबा तुझ सा जो दिल लेने में अय्यारी करे
सितम सा कोई सितम है तिरा पनाह तिरी
आग इस दिल-लगी को लग जाए
ज़ात उस की कोई अजब शय है
दिल में तुम हो न जलाओ मिरे दिल को देखो
आँखों में मुरव्वत तिरी ऐ यार कहाँ है