यारा है कहाँ इतना कि उस यार को यारो
मैं ये कहूँ ऐ यार है तू यार हमारा
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एहसान जो अजल से काम तेरा बिगड़े
सूफ़ी हूँ न वाइज़ हूँ नहीं हूँ मुल्ला
बाग़ में जब कि वो दिल ख़ूँ-कुन-ए-हर-गुल पहुँचे
मोहतसिब भी पी के मय लोटे है मयख़ाने में आज
मज़े की बात तो ये है कि बे-मज़ा है वो दिल
तीर पहलू में नहीं ऐ रुफ़क़ा-ए-पर्वाज़
जान अपनी चली जाए हे जाए से कसू की
मय-कदे में इश्क़ के कुछ सरसरी जाना नहीं
तिरी आन पे ग़श हूँ हर आन ज़ालिम
म्याँ क्या हो गर अबरू-ए-ख़मदार को देखा
गले से लगते ही जितने गिले थे भूल गए