तिरी आन पे ग़श हूँ हर आन ज़ालिम
तू इक आन लेकिन न याँ आन निकला
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गरेबाँ चाक है हाथों में ज़ालिम तेरा दामाँ है
सूफ़ी हूँ न वाइज़ हूँ नहीं हूँ मुल्ला
गले से लगते ही जितने गिले थे भूल गए
म्याँ क्या हो गर अबरू-ए-ख़मदार को देखा
डर अपने पीर से बी पीर पीर पीर न कर
क्यूँकर न मय पियूँ मैं क़ुरआँ को देख ज़ाहिद
दिलबर ये वो है जिस ने दिल को दग़ा दिया है
उस लब-ए-बाम से ऐ सरसर-ए-फुर्क़त तू बता
बाग़ में जब कि वो दिल ख़ूँ-कुन-ए-हर-गुल पहुँचे
कुछ तुम्हें तर्स-ए-ख़ुदा भी है ख़ुदा की वास्ते
जो पूछा मैं ने दिल ज़ुल्फ़ों में जूड़े में कहाँ बाँधा
तीर पहलू में नहीं ऐ रुफ़क़ा-ए-पर्वाज़