क्यूँकर न मय पियूँ मैं क़ुरआँ को देख ज़ाहिद
वहाँ वशरबू है आया ला-तशरबू न आया
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जान अपनी चली जाए हे जाए से कसू की
गर है दुनिया की तलब ज़ाहिद-ए-मक्कार से मिल
न पाया गाह क़ाबू आह में ने हाथ जब डाला
चश्म-ए-मस्त उस की याद आने लगी
उल्फ़त में तेरा रोना 'एहसाँ' बहुत बजा है
गरेबाँ चाक है हाथों में ज़ालिम तेरा दामाँ है
हर आन जल्वा नई आन से है आने का
गली से तिरी जो कि ऐ जान निकला
याद तो हक़ की तुझे याद है पर याद रहे
मज़े की बात तो ये है कि बे-मज़ा है वो दिल
नसीब उस के शराब-ए-बहिश्त होवे मुदाम
मरते दम नाम तिरा लब के जो आ जाए क़रीब