दिल में तुम हो न जलाओ मिरे दिल को देखो
मेरा नुक़सान नहीं अपना ज़ियाँ कीजिएगा
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आँखों में मुरव्वत तिरी ऐ यार कहाँ है
गरेबाँ चाक है हाथों में ज़ालिम तेरा दामाँ है
कौन सानी शहर में इस मेरे मह-पारे की है
तिरी आन पे ग़श हूँ हर आन ज़ालिम
ग़ुंचा को मैं ने चूमा लाया दहन को आगे
कुछ तौर नहीं बचने का ज़िन्हार हमारा
मज़े की बात तो ये है कि बे-मज़ा है वो दिल
दिल-रुबा तुझ सा जो दिल लेने में अय्यारी करे
अपनी ना-फ़हमी से मैं और न कुछ कर बैठूँ
दिलबर ये वो है जिस ने दिल को दग़ा दिया है
शब पिए वो सराब निकला है
जो पूछा मैं ने दिल ज़ुल्फ़ों में जूड़े में कहाँ बाँधा