आग इस दिल-लगी को लग जाए
दिल-लगी आग फिर लगाने लगी
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तो भी उस तक है रसाई मुझे एहसाँ दुश्वार
दिल में तुम हो न जलाओ मिरे दिल को देखो
उस लब-ए-बाम से ऐ सरसर-ए-फुर्क़त तू बता
वो आग लगी पान चबाए से कसू की
नीम-चा जल्द म्याँ ही न मियाँ कीजिएगा
गरेबाँ चाक है हाथों में ज़ालिम तेरा दामाँ है
ग़ैर के दिल पे तू ऐ यार ये क्या बाँधे है
एक बोसे से मुराद-ए-दिल-ए-नाशाद तो दो
शब पिए वो सराब निकला है
यारा है कहाँ इतना कि उस यार को यारो
एहसान जो अजल से काम तेरा बिगड़े
तिरी आन पे ग़श हूँ हर आन ज़ालिम